माना जा रहा है कि सेक्स के प्रति उदासीनता दिमागी सोच नहीं बल्कि मस्तिष्क की बीमारी हैएक अध्ययन से पता चला है कि कुछ महिलाओं में कामेच्छा कम होने की वजह उनके दिमाग़ से जुड़ी होती है.इस शोध के दौरान महिलाओं को उत्तेजित करने वाले वीडियो दिखाए गए और फिर उनके मस्तिष्क में हो रहे बदलावों की जाँच की गई.
शोधकर्त्ताओं का दावा है कि उन महिलाओं के मस्तिष्क के स्कैन में फ़र्क नज़र आया है जो सेक्स के प्रति उदासीन रहती हैं.इस शोध पर काम कर रहे अमरीकी वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें अपने शोध के दौरान ऐसे पुख़्ता तथ्य मिले हैं जिनसे पता चला है कि सेक्स के प्रति उदासीनता निश्चित तौर पर शारीरिक बीमारी है.इसके लिए शोधकर्ताओं ने महिलाओं को कामोत्तेजक वीडियो दिखाकर उस दौरान उनके मस्तिष्क की हलचल की जाँच की.
हाल के वर्षों में विज्ञान ने महिलाओं में कामेच्छा की कमी के लिए हाइपोऐक्टिव सेक्सुअल डिज़ायर डिसऑर्डर यानि (एचएसडीडी) को ज़िम्मेदार माना है.लेकिन सेक्स में उदासीनता के लिए पहले से अपने साथी के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ाव के स्तर, मनोवैज्ञानिक संबंध और शारीरिक स्थिति को ज़िम्मेदार माना जाता रहा है.
अब इस नए शोध के प्रमुख डॉक्टर माइकल डायमंड का कहना है कि एचएसडीडी एक वास्तविक शारीरिक बीमारी है.डॉक्टर डायमंड का कहना है कि "हमने जो शोध के दौरान देखा है उससे पता चलता है कि कामेच्छा में कमी वास्तव में एक शारीरिक विकृति है."लेकिन इस दलील से इस क्षेत्र में पहले से काम कर रहे दूसरे विशेषज्ञ पूरी तरह से सहमत नहीं हैं.
उनका मानना है कि ये शोध दिलचस्प हो सकता है लेकिन अभी इस दिशा में और काम किए जाने की ज़रूरत है.कैमडेन और आइलिंगटन मेंटल हेल्थ ट्रस्ट की सैंडी गोल्डबेक वुड का कहना है, "ये देखने के लिए कि मस्तिष्क में जिस बदलाव की चर्चा की जा रही है वो अवसाद की बजाए सेक्स से संबंधित है, और बड़े शोध करने की ज़रूरत है."
सैंडी गोल्डबेक वुड ने कहा कि अवसाद या डिप्रेशन को सेक्स संबंधी समस्या के लिए ज़िम्मेदार माना जाता रहा है.कुछ और विशेषज्ञों की राय है कि सेक्स के प्रति उदासीनता के लिए सिर्फ़ किसी एक कारण को ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता क्योंकि ये एक मेडिकल समस्या है और ये रहस्य अभी बना हुआ है कि इसकी वजह एक है या कई.
सेक्स के प्रति आकर्षण में कमी के लिए व्यस्त जीवनशैली के अलावा शारीरिक समस्याओं, जैसे कि बच्चेदानी में गाँठ को भी व्यापक तौर पर ज़िम्मेदार माना जाता रहा है.विशेषज्ञ मानते हैं कि ये एक समस्या तो है लेकिन जितना माना जाता है, उससे कहीं कम महिलाएँ इससे प्रभावित हैं.